October 6, 2024

जनगणना के आंकड़े सही होते हैं। जरा आप आगे दिये गये 18 वीं सदी ईस्वी के जनगणना आंकड़ों पर विचार कीजिये।

क्योंकि वो आंकड़े सामान्यवर्ग के अधिकारियों और प्रगणकों द्वारा एकत्रित किये गए थे, जिनमें जातिगत ऊँच-नीच की भावना पूर्णतया भरी हुए थी। अतः उनके विरुद्ध यह आरोप नहीं लगाया जा सकता है कि उनके द्वारा रैगर समुदाय को जान बूझकर महामण्डित किया गया है। बल्कि उनके द्वारा वही लिखा गया है, जो उनके द्वारा देखा गया था।
वस्तुतः उस काल के सामान्यवर्ग के विद्वान और आम लोग चमार शब्द और चमार जाति के अर्थ से भली भांति परिचित थे। वो इस बात को भी अच्छी तरह जानते थे कि रैगर समुदाय तो आनुवंशिक रूप से ही, चमार समुदाय से एक अलग जाति समुदाय है। उनके द्वारा भले ही रैगरों से छुआछात की हो। परन्तु उनके द्वारा रैगर समुदाय को चमार जाति का नहीं कहा गया था । जब उन से जानकारी लेकर, सन् 1951 ईस्वी में राजपूताना की अनुसूचित जाति की अनुसूची तैयार की गयी थी, तब उनके द्वारा रैगर समुदाय को अलग क्रमांक पर अंकित करवाया गया था। लेकिन जब राजस्थान में सन् 1956 ईस्वी में काका कालेलकर आयोग आया तो उसको कुछ लोगों द्वारा गलत सूचना देकर, रैगर शब्द को चमार-संवर्ग के कोष्ठक में अंकित करवा दिया गया। इस पर जयपुर निवासी श्री रूपचन्दजी जलुथरिया द्वारा जीवन पर्यन्त आपत्ति की गयी थी । यह बात उनकी कृति में भी लिखी गयी है। लेकिन स्वार्थी लोगों ने तर्क किया  कि रैगर समुदाय को चमार-संवर्ग से निकलवाकर, अलग क्रमांक पर अंकित करवाने से रैगर जाति की स्थिति पर कौनसा असर पड़ जायेगा? लेकिन उन अज्ञानियों को इस बात का ज्ञान नहीं है कि राष्ट्रीय स्तर की पार्टियां टिकिट वितरण के समय इस बात को मानती रही है कि रैगर चमार ही है। अतः किसी भी पार्टी ने रैगर समुदाय को उसकी जनसँख्या के अनुपात में उसके सदस्य को भी, टिकिट देने की बात पर विचार नहीं किया है। जबकि काका कालेलकर आयोग ने बैरवा समुदाय को चमार-संवर्ग से अलग कर, उनके जाति जातिनाम को पृथक क्रमांक पर दर्ज करवाया था। लेकिन इसके लिये उनके नेताओं ने काका कालेलकर आयोग को इस बात से आश्वत किया था कि बैरवा एक गैर-चमार जाति है। आज उसी का परिणाम है कि बैरवा जाति को रैगर समुदाय की तुलना में अधिक राजनैतिक महत्व दिया जाता है। जबकि रैगर जाति कि राजनैतिक ग्रेड तो शून्य के पास ही अटकी हुई है।
वस्तुतः सामान्य वर्ग के लोगों ने तो रैगर समुदाय की सही और सम्मानजनक स्थिति को दर्शाया था। उनके द्वारा तो सन् 1941 ईस्वी में रैगरों को सूर्यवंशी क्षत्रिय मानने की जनसाधारण से अपील भी की थी । जबकि उनके द्वारा ऐसी अपील किसी चमार संवर्ग की जाति के लिए नहीं की है।

लेकिन एक तरफ तो रैगर बंधुओं ने ही क्षुद्र स्वार्थ में फंसकर, उनके समुदाय को सामाजिक और राजनैतिक नुकसान पंहुचाया है। दूसरी तरफ आज कई रैगरबंधु अम्बेडकरजी के नाम पर सामान्यवर्ग के लोगों से लड़ाई झगड़ा करने से नहीं चुकता है। क्योंकि आज उसी को दलित होने का नुकसान पहुंचाया जा रहा है, जबकि बैरवा मेघवाल भाई राजनीति से काम लेते हैं।  मेरे द्वारा मालूमात करने पर,  मुझे किसी भी रैगर भाई ने यह सूचना नहीं दी है कि उनके सामान वे लोग भी सामान्यवर्ग से लड़ाई मोल ले लेते हैं ।

आज भले ही कुछ लोगों द्वारा राजस्थानी रैगर शब्द से  चमार शब्द को ढकने का प्रयास किया जा रहा हो, परन्तु इससे रैगर समुदाय की क्षत्रिय आनुवंशिकता समाप्त होने वाली है।   रैगर जन्मजात ही चमार-संवर्ग से एक अलग समुदाय है तथा जिस प्रकार से राठौड़ शब्द राट या रट्ट या राष्ट्र शब्द का परिवर्द्धित रूपांतरण है, उसी प्रकार से रैगर शब्द रघु शब्द के अपभ्रंश रग शब्द का परिवर्द्धित रूपांतरण है। दोयम रैगर समुदाय रघुवंशी क्षत्रियों की 15 मुख्य शाखाओं में से एक है।

(1) मरदुमशुमारी रिपोर्ट मारवाड़राज,1891 पृष्ठ संख्या 542

रैगर वैष्णव धर्म को मानते हैं और शालिग्राम की पूजा करते हैं। पूर्व परगने में रैगर जनेऊ पहनते हैं, जो कच्चे सूत के धागे की होती है। इष्टदेवी गंगा को मानते हैं और उसे ही कुलतारण माता मानते हैं। इनके पुरोहित छन्याता ब्राह्मण एवं गौड़ ब्राह्मण होते हैं। वे ही इनके संस्कार, पिण्ड आदि करवाते हैं तथा किसी समय रैगर जाति के लोग सोने का टका देते थे, परन्तु अब इस निर्धन अवस्था में हल्दी में रंगकर टका देते हैं।

(2) The 1891 Indian Census of India

It was conducted by the British and covered India, Pakistan, Bangladesh and Burma…..

The ethnic distribution was as follows:

Class Group Caste Population
All Classes All Groups All Castes 286,912,000
Military & Aristocratic Rajput 29,393,870
Jat 10,424,346
……….. …………… ………….. ………..
Artisans Total 28,882,551
Goldsmiths Total 1,661,088
Sonar 1,178,795
Blacksmiths Total 2,625,103
Lohar 1,869,273
Salt and Lime Total 1,531,130
Lonia 796,080
Uppar 267,715
Agri 241,336
Rehgar 77,856
Others 148,143
       …………        ………….        ……….      ………
Untouchables  Total 30,795,703
Leather Workers Total 14,003,100
Chamar 11,258,105
Mochi 961,133
Madiga 927,339
Sakilia 445,366
Bambhi 220,596
Others 190,561
……….. …………. ………. ………
Scavengers Total 3,984,303
Mehtar 727,985
Chuhra 1,243,370
Megh 148,210
       …………        ………….        ……….      ………

References

Database: General report on the Census of India, 1891, Page 199

  1. “R.H.R.; S. de J. (January 1926). “Obituary: Sir Athelstane Baines, C.S.I.”.Journal of the Royal Statistical Society(London: Royal Statistical Society) 89 (1): 182–184.(subscription required)

उक्त जनगणना रिपोर्ट ब्राह्मण, बनिया, कायस्थ, मुस्लिम आदि समुदायों में जन्में जनगणना अधिकारियों द्वारा तैयार की गई थी। चूँकि 18-19 वीं सदी में तो ऊंच-नीच का माहौल यहां तक बढ़ गया था कि महाराष्ट्र के ब्राह्मणों ने छत्रपति शिवाजी को राजतिलक करने से भी मना कर दिया था। अतः उस माहौल में उन अधिकारियों की ऐसी हिम्मत नहीं थी कि वे गलत रिपोर्ट देते।

अतः रैगरों को स्मृतिकालीन शूद्रों से जोड़ना गलत है।

हाँ, यह सही है कि 20 वीं सदी में राजपूताना के परम्परागत चमार समुदाय के द्वारा कार्य विशेष छोड़ देने के बाद राजपूताना के उच्चवर्ग के लोगों ने रैगर समुदाय पर जमकर अत्याचार किया था। लेकिन 40 के दशक के आते-आते रैगर समुदाय उग्र हो गया था। अंततः ब्रिटिश सरकार द्वारा जयपुर रियासत के पुलिस विभाग को दी गयी खुपिया रिपोर्ट के बाद रैगरों पर सार्वजानिक रूप से किया जा रहा, अत्याचार बंद हुआ। लेकिन एक बार गिरा रैगर समुदाय पूर्णतः खड़ा नहीं हो पाया है।

आज के रैगर सपूतों की धारणा कैसी भी बन गई है? लेकिन रैगरों के विशाल दौसा सम्मलेन को सफल बनाने में वहां के सामान्यवर्ग का भी हाथ था।

– C.L. Verma R.A.S. rtd.